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दोस्तों,
एक मौलिक ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों की हवाले,,,!!

               ग़ज़ल
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"गहरे घाव मिले ज़िंदगी में हमें,
क्यूँ जीना फिर शर्मिंदगी में हमें।
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मस्त थे हम[..]

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