व्यवहार नैनों का
चंचल चितवन का निमंत्रण, क्यूँ तुमने स्वीकार किया
भुजपाशों में सौंपकर, क्यूँ तुमने इतने अधिकार दिये।
भरा-पुरा संसार दान कर दूँ
अगर साथ तुम्हारा मिल जाए
स्वीकार करो मुझको आने दो
सभी ताने सहुँगी गर मिल जाए
इस राह साथ नहीं आना था, क्यूँ तुमने मुझसे वचन लिये।
अर्पण कर चुकी तन-मन अपना
चाहो तो प्राणों को भी ले लेना
जन्म-जन्मांतर तक बनूँ तुम्हारी
बस इतना अधिकार मुझे दे देना
अधीर पिपासा को बहलाने को, क्यूँ मैनें श्रृंगार किये।
तुम मेरे दिल की धड़कन हो
और मैं तुम्हारी चौंध नयन की
हृदय स्थल पर डाली थी तुमने
मुक्तामणि अँखियों से पावन की
धवल चंद्रिका के आँचर में, रम्य-मनोहर विनय लिये।
है तो चोट हृदय के पर वो दुखते
सुधि-दाह से अश्रु मैं पी लूँगा
सृजन करूँगा रचना अपनी
भव में तुम्हें मैं अमर कर दूँगा
स्वयं ही सारे वचन निभाऊँगा, जिसे हम बारंबार लिये।
✍️ सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”
नवजीवन विहार से.नं.४, विन्ध्यनगर
सिंगरौली (मध्यप्रदेश)