बचपन के वो सुनहरे दिन कब बीत गये जीवन के आपाधापी मे,
अबोल थे, नासमझ थे सच्चे दिल के मतवाले थे,
कब बड़े हुए पता न चला,
ये सारी खुशियां पीछे छूट गई जीवन की आपाधापी मे l
पहले आँगन, चबूतरे पर बैठ कर हँसी ठिठोली करते थे,
आज अब जब बड़े हुए तो ये सारे नाते पीछे छूट गए जीवन की आपाधापी मे l
पहले गली मुहल्ले में एक टीव्ही होता था और सारे गली के बच्चे इतवार को आते थे गरम गरम पोहे के संग रामायण और महाभारत के संग संग शक्तिमान और फास्टर फैने देखते थे l
अब तो हर घर में 2-2 टीव्ही होते हैं, प्राइवेसी के चलते सब अपनी मर्जी के मालिक हैं,
ना जाने कब छूट गयाअपनत्व जीवन की आपाधापी में l
नए-नए संसाधनों ने घर में ले ली अपनी जगह, सारे रिश्ते नाते रहे गए इन्हीं के ऊपर जीवन के आपाधापी में l
अब कोई बुलाता नहीं और कोई जाता भी नहीं, सगे संबंधी दूर हो गए व्हाट्सएप, इंस्टॉ-snap के चक्कर में, खो दिया मेल मिलाप जीवन की आपाधापी में, जीवन की आपाधापी में……..
श्याम प्रीत (सौ. प्रीती भुतडा अकोला)
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