कहीं पहले मैं रहता हूँ कहीं मैं बाद रहता हूँ
मैं बचपन की तरह बिल्कुल यहां आज़ाद रहताहूँ
मुझे पढ़कर भुलाना है नहीं आसाँ मिरे हमदम
मैं सबको ही यहां अब मुँह ज़ुबानी याद रहता हूँ
पता मेरा अगर कोई जो पूछे तो बता देना
मैं ज्यादातर तो लखनऊ में अमीनाबाद रहता हूँ
सितम ये है कटेगी किस तरह ये ज़िन्दगी पूरी
यही मैं सोचकर अब तो दिल-ए-नाशाद रहता हूँ
नहीं रहता किसी के साथ तो बस मैं नहीं रहता
अगररहता हूँ मैंबनकर तोबस हम-ज़ाद रहता हूँ
_ विपिन दिलवरिया ‘ओम’
मेरठ, उत्तर प्रदेश