बयां अपने वो दर्द-ओ-ग़म नहीं करता
पिता दु:ख का कभी मातम नहीं करता
थिरकते थे सनम जिसको पहन पग में
वो घुँघरू आज-कल झम-झम नहीं करता
वो बच्चों के लिए चलता है जीवन भर
सफ़र अपना कभी भी कम नहीं करता
दबा लेता है तकलीफें वो सीने में
पिता रोए तो आँखें नम नहीं करता
अगर पीड़ा में आँसू गिर भी जाए तो
वो गिरकर भी कभी छम-छम नहीं करता
हुए नासूर सारे ज़ख़्म देखो 'ओम'
असर कोई भी अब मरहम नहीं करता
_विपिन दिलवरिया 'ओम'
मेरठ, उत्तर प्रदेश