यार जब से बे-हिजाबी हो गया
बादा-कश मैं और वो साक़ी हो गया
मयकदे जाएगा कैसे जो तिरी
आँखों की सहबा का आदी हो गया
मयकशी का है ये आलम दोस्तो
जाम रक्खा और ख़ाली हो गया
पी रहा हूँ जब मिले जैसी मिले
यार मैं कितना शराबी हो गया
'ओम' कैसे मयकशी को छोड़ दूँ
शौक़ मेरा अब ये शाही हो गया
_ विपिन दिलवरिया 'ओम'
मेरठ , उत्तर प्रदेश