आधी- रात, छत पर मंद-मंद हवा चल रही थी| व्योम् छत के किनारे खड़ा, नीचे की जमीन देख रहा थाl तभी नीचे खड़ी, उसकी पत्नी श्यामा; उसे बुलाने का इशारा करती हैं| उसे देख, वह भयभीत होकर भागने लगता हैंl तभी वह छत से गिर जाता हैं| सहसा वह एक रास्ते पर, खुद को खड़ा पाता हैं| वह दोपहर की कड़ी धूप में, पसीना-पसीना, खाली पैर; गर्म धरती पर चल रहा होता हैं| तभी फटे -पुराने कपड़े पहने, एक आदमी उसकी तरफ आता हैं| उसके हाथ -पैर कीचड़ से पूरी तरह से सने थे| व्योम्, उसे अपनी तरफ आता देख रुक जाता हैंl वह जैसें ही रुकता हैं; वह आदमी उसकी तरफ दौड़ पड़ता हैं| उसे पागलो की तरह दौड़ता देख , व्योम् भागता हैं; लेकिन न जानें क्यूँ, उसके कदम उठते ही नही; और वो पागल आदमी उसके करीब आ जाता हैं| वो उसके पास आता हैं, और उसका गला दबाने लगता हैं| व्योम् चिल्लाने की कोशिश करता हैं, लेकिन उसके मुँह से कोई शब्द नही निकल पाता| वह पूरा जोर लगाता हैं, खुद को बचाने के लिए; पर उसके हाथ-पैर हिलते ही नही l उसका दम घुटने लगता हैं| उसका बदन, डर से, पसीने से, लथ-पथ हो जाता हैं ; साँसे उखड़ने लगती हैं| तभी उसकी आँखे खुल जाती हैं|
वह अपने बिस्तर पर पड़ा हुआ था| पंखा रुका हुआ था| एक चादर उसके मुँह तक तनी थी, चेहरे पर खुब पसीना था| वह उठ गया, और समझ गया, कि वह सारी घटनाएँ स्वप्न थी| उसने घड़ी देखी, तो दोपहर के 12 बज गये थे| उसने रूम की बंद खिड़कियाँ खोली| जैसे- ही उसने खिड़कियाँ खोली, तो त्वचा को जलाने वाली गर्म हवाएँ अंदर आने लगी| उसने झट से खिड़कियों को वापस बंद कर दिया, और पर्दो को पूरा खींच दिया| फिर वह हाथ- मुँह धोकर श्यामा के कमरे की ओर चल पड़ता हैं| जब वह कमरे के अंदर जाता हैं, उसे श्यामा नजर नही आती| कमरे की खिड़कियाँ खुली हुई थीl पत्तो और धूल से कमरा भरा हुआ था| व्योम् समझ जाता हैं, कि आँधी आने पर जरूर श्यामा ने खिड़कियाँ बंद नही की होगी| वह जाकर खिड़कियाँ बंद कर देता हैं| वह घर के अन्य कमरों में भी उसे ढुँढता हैं, परन्तु श्यामा उसे नही मिलती| वह बाग-बगीचा, हर जगह देखता हैं, पर उसका कोई अता-पता नही मिलता| वह डर जाता हैं, उसका मन अंदर ही अंदर रूदन करने लगता है; विचारो का ढेर उसके मन में शोर मचाने लगता है| एक पल के लिये उसे लगता हैं, कहीं रात में हुई अन-बन को उसने मन पर तो नही ले लिया, या फिर क्रोध-वश उसने ऐसा-वैसा तो नही…….. फिर मन को ढ़ाढस देते हुए वह छत की ओर चल पड़ता हैं| वह सीढ़ियों पर श्यामा-श्यामा कहता दौड़ता हुआ जाता हैं, जैसें वह उसे खो चुका हो| वह छत पर जैसें ही पहुँचता हैं, तो देखता हैं कि श्यामा छत पर लेटी हुई हैं| उसका तन पत्ते, धूल-मिट्टी से लदा हुआ हैं| वह छज्जे की छाया से निकलकर छत की धूप में कदम रखता हैं, परन्तु जैसें ही वह पाँव रखता हैं, उसके पाँव जलने लगते हैं| पाँव के जलते ही उसकी आँखों में आँसु आ जाते हैं| वह मन ही मन सोचता हैं –“ जिस फर्श पर मात्र कदम रखने से उसके पाँव जल रहे हैं, उस पर श्यामा न जाने कैसे लेटी हुई हैं? क्या उसे अब किसी कष्ट का बोध नही होता? “ यह सब सोचता, वह हिम्मत करता हुआ श्यामा के पास जाता हैं, और उसे जगाने की चेष्टा करता हैं| लेकिन वह नही उठती हैं, अचेत अवस्था में पड़ी रहती हैं| व्योम् उसे उठाने की कोशिश करता हैं, लेकिन श्यामा के मोटापे के कारण, वह उसे नही उठा पाता हैं| वह जैसें-तैसे उसे खींच कर छज्जे की छाँव तक लाता हैं, और ठण्डा पानी लाकर उसके मुँह पर पानी के छींटे मारता हैं; पर वह जस् की तस् पड़ी रहती हैं| वह डॅाक्टर रमेश को फोन लगाता हैं, फिर श्यामा को किसी तरह कमरे के भीतर ले जाता हैं| करीब आधे घण्टे के पश्चात डॉक्टर आते हैं, और डॅाक्टर, श्यामा की जांच कर व्योम् को दवा की पर्ची थमाते हैं, और उसका ध्यान रखने को कहते हैं| व्योम् पास की दुकान से दवा खरीद लाता हैं|
इतने देर में श्यामा होश में आ चुकी होती हैं, और बिस्तर पर बैठी रहती हैं| श्यामा को होश में देख, व्योम् कुछ फल लेकर उसके पास जाता हैं| व्योम के हाथों में फल देख श्यामा उसे लेकर फेंक देती हैं, और तेज़ आवाज में कहती हैं:- “तुम जैसा आदमी मैनें आज तक नही देखा|”
व्योम् चित् मन से धीमी आवाज में कहता हैं:-“ क्या हुआ, मैंने क्या किया?”
श्यामा चिल्लाते हुए कहती हैं: – “क्या हुआ ? तुम पुछते हो क्या हुआ? अरे! हमे जीने का कोई हक़ नही हैं, हमारा बच्चा नही हैं अब इस दुनिया में ;और तुम्हें खाने- पीने की पड़ी हुई हैं! जानवर भी अपने बच्चे के बगैर नही रहते…………छि: !”
व्योम यह सब सुनकर रोता हुआ कमरे में चला जाता हैं| उनके बच्चे को मरे एक महीने हो चुके हैं, और इस एक महीने में ऐसा पहली बार हुआ था, जब व्योम् ने उनके बीच हुई अन-बन में श्यामा को बिना कुछ कहे चुपचाप अपने कदम पीछे लिए हो| श्यामा भी कुछ देर तक बैठी रोती रही, फिर उसकी आँख लग गयी| व्योम् श्यामा की देख-भाल के लिए, पड़ोस की शांता चाची को बुला लाता हैं|
शांता चाची :- “सब ठीक हैं? मुझे पता चला कि श्यामा की तबीयत ठीक नही हैं| ध्यान रखो, ऐसे समय में ऐसा होता हैं, अब तुम दोनो ही तो हो| “
व्योम् (सिर हिलाते हुए ):- “ हाँ जानता हूँ, चाची ; इसीलिए आपको बुलाया हैं| आप तो जानती हो, ऐसी परिस्थिति में, मैं कोर्ट भी नही जा पा रहा था, और न ही अपने ऑफिस जा पा रहा था|”
शांता चाची (कुर्सी पर बैठते हुए ) :- “ हाँ बेटा पता हैं, तुमलोगो की हालत छिपी कहाँ हैं किसी से , और बिन काम के पैसा भी तो नही मिलता , जिससे जीवन आगे बढ़े|”
व्योम् :- “ हाँ इसीलिए तो आपको बुलाया हैं| आप बस इतना देखिए , कि श्यामा ठीक से रहे| अभी मैंने सोचा कि ऑफिस हो आता हूँ| सिर्फ़ आज के लिए आपको तकलीफ दे रहा हूँ, माफी चाहता हूँ|”
शांता चाची (ढ़ाढस बंधाते हुए ):- “ नही बेटा, ऐसा नही हैं|”
व्योम् :- “चलता हूँ|” (कहकर चला जाता हैं)
शांता चाची कुर्सी पर बैठ जाती हैं| फिर थोड़ी देर बाद श्यामा के कमरे के पास जाकर, वहाँ रखे सोफे पर बैठ जाती हैं, और पास ही रखी टेबल पर रखी एक पुरानी मैगजीऩ उठाकर पढ़ने लगती हैं| समय बीतता हैं, शाम से रात हो जाती हैं|
हल्की-हल्की ठण्डी हवा चल रही होती हैं| श्यामा, कमरे के एक कोने में बैठी रहती हैं| व्योम् छत से आता हैं, तभी श्यामा उस पर झपट पड़ती हैं, और व्याकुल होकर उससे कहने लगती हैं:- “मेरा गला दबा दो , सुन रहे हो; सुन रहे हो तुम| कुछ तो करो|”
लेकिन व्योम उससे कुछ नही, कहता , और ना ही कुछ करता हैं|वह चुपचाप खड़ा, उसे देखता रहता हैं, और फिर अचानक से रोने लगता हैंl रोते-रोते, वह जमीन पर गिर जाता हैं|श्यामा यह देख उसे उठाने की कोशिश करती हैं , लेकिन वह नही उठताl एकाएक उसे व्योम् मरा हुआ प्रतीत होता हैं| वह जोर-जोर से रोने लगती हैं| तभी अचानक उसकी आँख खुलती हैं| वह स्वप्न से उठ जाती हैंl स्वप्न से भयभीत हो, वह कमरे के बाहर आती हैं, और व्योम्-व्योम् कहकर पुकारने लगती हैं|श्यामा की आवाज सुन, शांता चाची सोफे से उठ जाती हैं; और कहती हैं:-“वह ऑफिस गया हैंl चिंता मत करो, वक्त सब ठीक कर देगा|”
श्यामा (आँखो में आँसू लिए सिर हिलाते हुए, हाँ का इशारा करते हुए कहती हैं ):-“ आप अपने घर जाईए चाची, रात बहुत हो चुकी हैं|”
शांता चाची :- “ हाँ तुम अपना ध्यान रखना, व्योम भी आता होगा|” यह कहकर चली जाती हैं|
श्यामा आँखो से आ्ँसु पोछ, हाथ-मुँह धोकर रसोई घर चली जाती हैं|
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