दुर्गा पूजा का मेला लगा हुआ था | आज मां की नौवें रूप की पूजा थीं | धर्मवीर कुमार अपनी पोती को दुर्गापूजा का मेला दिखाने ले गये थे | रात हो चुकी थीं , इसीलिए उनका बेटा वीरेन,बहू शीला और पत्नी नीलिमा देवी घर में परेशान हो रहें थें | अक्टूबर का महीना था , इसीलिए हल्की-हल्की ठंड ने भी आश्रय ले रखा था | इस वजह से नीलिमा देवी और भी अधिक परेशान थी | तभी अंदर के कमरे से शीला आती हैं |
शीला आकर चिंताजनक भाव सें कहती हैं :-मैंने कहा था न मां जी कि बाबूजी और मीना को जाने मत दीजिए अब देखिए इतनी रात हो गई हैं ,बाबूजी की तो सेहत खराब ही रहती हैं,कहीं बच्ची की सेहत भी खराब न हो जाए |
नीलिमा देवी :- तो तुम्हें क्या लगता हैं मैंने उन्हें नहीं रोका लेकिन मीना ने घुमाने को क्या कह दिया , वे उसे लेकर घूमने निकल गए |
पास में ही बैठा वीरेन उन्हें समझाते हुए कहता हैं : – आप चिंता न करें ,वे लोग आ जाएंगे |
तभी कुंडी बजाने की आवाज आती हैं | शीला जाकर दरवाजा खोलती हैं , तो देखती हैं बाबूजी और मीना घर आए हैं | वह मीना को गोद में उठाकर अंदर चली जाती हैं और जाते –जाते कहती हैं , आइए बाबूजी |
बाबूजी को देखते ही वीरेन उठ खड़ा होता हैं और कहता हैं बाबूजी आपने घर आने में इतनी देर क्यों लगा दी | आप जानते भी हैं हम सब आपके लिए कितना परेशान हो रहे थें |
बाबूजी यह सुनकर कहते हैं :- इतना परेशान होने की क्या जरूरत हैं ,मैं और मीना तो यही पूजा घूमने गए थें |
नीलिमा देवी :- झुठ क्यों कहते हैं | यहीं देवी मां की मूर्ति देखने में क्या इतना वक्त लग जाता हैं | यह क्यों नहीं कहते मेला दिखाने ले गये थें |
शीला :- हां बाबूजी इतनी रात तक बाहर रहना क्या अच्छा लगता हैं , कम से कम एक बार आपने मीना के बारे में सोच लिया होता |
नीलिमा देवी : – और न हीं तो क्या | कुछ नहीं तो अपने बेटे के बारे में ही सोच लिया होता , आपकी वजह से बेचारा दिनभर चिंतामणि बना रहता हैं |
वीरेन:- अब आप लोग इन बातों को छोड़िए | बाबूजी आप जाकर आराम कीजिए |
सभी सो जाते हैं| अर्धरात्रि को जोर– जोर से खांसने की आवाज आती हैं | आवाज सुनकर वीरेन और बाकी सदस्य उठ जाते हैं |
वीरेन बाबूजी के कमरे में जाता हैं तो देखता है कि बाबूजी जोर जोर से खांस रहे हैं और उन्हें ठंड लगी हुई हैं , जिसके कारण वह कांप रहे हैं | यह देख वीरेन जाकर तुरंत उन्हें कंबल ओढ़ा देता हैं और शीला से कहकर पानी मंगवाता हैं | लेकिन पानी पीने से भी उनकी खांसी नही रूकती | यह देख नीलिमा देवी उनकी दवा ढुंढती हैं लेकिन दवा खत्म होने के कारण उन्हें काढ़ा बनाना पड़ता है लेकिन उनकी खांसी रूकने का नाम ही नहीं लेती | इसी परेशानी में कब सुबह हो जाती हैं ,पता ही नहीं चलता |सुबह होते ही वीरेन बाबूजी को लेकर अस्पताल जाता हैं | बाबूजी का इलाज कराकर वह घर आता हैं और बाबूजी को बिस्तर पर लिटा देता हैं और बाहर आकर कहता हैं : – शीला मीना तैयार हो गई |
शीला :- किस लिए ?
वीरेन :- मीना को ट्यूशन छोड़ना हैं |
शीला :- कोई ट्यूशन व्युशन जाने की जरूरत नहीं हैं |
वीरेन :- लेकिन क्यों ?
शीला :- आपको तो पता ही नहीं रातभर आपके बाबूजी ने परेशान कर रखा था | बेचारी बच्ची भी रात को सो नहीं सकी तो ट्यूशन जाकर क्या करेगी |
वीरेन :- क्या मीना कल रात सोई नहीं थीं |
शीला :- छोड़िए आपसे तो कुछ कहना ही बेकार हैं | आपको तो सिर्फ़ बाबूजी की ही पड़ी रहती हैं | यह कहकर शीला रसोईघर चली जाती हैं | तभी नीलिमा देवी पूजा की था ली लेकर प्रवेश करती हैं और कहती हैं :- क्या हुआ बहू , क्यों इतना लाल पीली हो रही हो ?
वीरेन :- कुछ नहीं थोड़ी परेशान थीं इसीलिए गुस्सा कर गई |
तभी मीना बाहर आती हैं और कहती हैं | दादाजी कहां हैं पापा ?
वीरेन :- अंदर हैं |
यह सुनकर मीना दौड़कर अंदर चली जाती हैं और अपने दादाजी से दोबारा घुमाने ले जाने को कहती हैं | यह देख शीला आती हैं और मीना को जोर से थप्पड़ मार कहती हैं :- चुपकर बड़ा शौख हैं तुझे घूमने का , हैं न ? कल तेरी वजह से ही दादाजी की यह हालत हो गई और तुझे अभी भी घूमने की पड़ी है | जान लेकर छोड़ेगी क्या |थप्पड़ खायी बच्ची जोर-जोर से रोने लगती हैं | दो दिन बीत जाते हैं , पर धर्मवीर कुमार की हालत में कोई सुधार नहीं होता और तो और वीरेन की छुट्टियां भी खत्म हो जाती हैं | जिस वजह से वह काम पर जाना शुरू क चुका रहता हैं | काम खत्म करके जब वह घर वापस लौटता रहता हैं, तो उसे अपना पूर्व मित्र मिलता हैं | वे दोनों एक ढ़ाबे पर चले जाते हैं , और साथ मिलकर बातें करने लगते हैं |
वीरेन :- घर में सबकुछ ठीक है न , और काम कैसा चल रहा हैं ?
अजय :- घर में सबकुछ ठीक हैं | आजकल ट्रैवेल एजेंसी के लिए काम कर रहा हूं | तू बता तेरे घर में सबकुछ ठीक चल रहा हैं न | सुना था तू जिस कम्पनी के लिए काम कर रहा हैं , वह आजकल कुछ फीकीं चल रही हैं | पैसों की कोई दिक्कत तो नहीं चल रही न |
वीरेन :- युं पगार तो ठीक चल रही हैं | लेकिन घर में बाबूजी की तबीयत कुछ ठीक नहीं रह रही हैं | जिस कारण धनसंचय नहीं कर पा रहा हूं |
अजय :- तेरे बाबूजी अभी तक बीमार हैं |क्या हुआ सब ठीक तो हैं न ?
वीरेन :- यूं तो कोई बड़ी बात नहीं | हाईप्रेशर के मरीज हैं और साथ ही अपना ध्यान नहीं रखते जिस कारण पिछले दो-तीन सालो से कुछ ज्यादा ही बीमार रहते हैं |
अजय :- वैसे तो तुझे पहली बार देखते ही मुझे लगा कि कुछ तो बात हैं |
वीरेन :- तुझे कैसे पता चला ?
अजय :- तेरे माथे पर जों यह शिक़न हैं न वो सबकुछ बता देती हैं |
वीरेन:- शिक़न ! फिर हंसकर कहता हैं, यह तो लगता हैं मेरे साथ ही आयी थीं | पीछा ही नहीं छोड़ती |
अजय :- ऐसा कुछ नहीं हैं | तुम बुरा मत मानो |
वीरेन :- मुझे बुरा नहीं लगा | अक्सर सब यहीं कहते हैं |
अजय(बेफिक्री में ) :- तुम सोचते ही इतना हो |
वीरेन : – अच्छा तो अब मैं चलता हूं, अपना ध्यान रखना |
अजय :- हां , तुम भी अपना ध्यान रखना | मिलते रहना |
वीरेन जैसे ही घर पहुंचता हैं ,मीना उसकी गोद में चढ़ जाती हैं | वीरेन प्यार से मीना को चुमता हैं , फिर उसे अपनी मां के हाथों दे देता हैं | तभी अंदर से बाबूजी आते हैं और वीरेन को जल्दी से मुंह-हाथ धोकर खाना खाने को कहते हैं | अपने पिता को सेहतमंद देखकर वह खुश हो जाता हैं , और खाने चला जाता हैं | वीरेन के खाना खाते ही उसके पिता उसे अपने कमरे में शतरंज खेलने को बुलाते हैं | खेल खत्म होने के बाद वह अपने कमरे में जाता हैं, तो देखता है कि शीला मीना को सुला रही हैं | वीरेन को देखकर वह मीना को सुलाकर उससे बातें करने लगती हैं , और कहती हैं :- आज कितने दिनों बाद आपको चैन से देख रही हूं | अच्छा हुआ बाबूजी जल्दी ठीक हो गए |कल मैं इस बात के लिए भगवान जी को सौं रूपये का भोग लगाऊंगी |
वीरेन (मुस्कराके ) :- अच्छी बात हैं | (कुछ देर ठहर के ) तुम कितना ध्यान रखती हो मां और बाबूजी का | सच में तुम बहुत अच्छी हो |
शीला :- वह तो मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मैं बहुत अच्छी हूं | वैसे कल भगवान जी से एक और चीज मांगने वाली हूं | जानना नहीं चाहोगे , क्या ?
वीरेन :- वह क्या ?
शीला :- यहीं कि जो रह-रहकर आपके माथे पर शिक़न आ जाती हैं | वह जल्द ही दूर हो जाए |
वीरेन :- अच्छा सब मांग लेना , चलो अब सो जाओ |
अगली सुबह सूर्योदय होता हैं |वीरेन रोज की तरह मीना को ट्यूशन फिर वहां से काम पर चला जाता हैं | काम से जब वह घर लौट आता हैं , तो वह अपने पिता को घर पर नहीं पाता यह जानकर वह चिंता में पड़ जाता है | अपनी मां से पुछने पर उसे पता चलता है कि बाबूजी अपने दोस्तों के साथ अपने किसी दोस्त के बेटे की सगाई में गए हैं | यह जानकर वीरेन परेशान हो जाता हैं | परेशानी में वह न तो कुछ खाता है और न ही कुछ पीता है , और बिना हाथ-मुंह धोए वहीं आंगन में बैठ अपने पिताजी की प्रतिक्षा करने लगता हैं | तभी अचानक से बाहर से खांसने की आवाज आती हैं | आवाज सुनकर नीलिमा देवी जाकर दरवाजा खोलती हैं | जैसे ही दरवाजा खुलता हैं, वैसे ही धर्मवीर कुमार अंदर आते हैं ,और पानी मांगते हैं | नीलिमा देवी उन्हें पानी का ग्लास देकर चली जाती हैं |
वीरेन गुस्से में आता हैं , और कहता है :- किसने कहा था आपको इतनी ठंड में बाहर जाने को ?
धर्मवीर कुमार :- क्यों ? अब क्या मुझे अपने लोगों से मिलने के लिए तुम्हारी अनुमति की आवश्यकता हैं ?
वीरेन :- हां , मैं यहां दिन-रात आपकी सेहत के लिए परेशान रहता हूं , और आप हैं कि इतनी ठंड में बिना अपनी सेहत के बारे में सोचे घर से बाहर निकल जाते हैं | खुद के बारे में न सही और लोगों के बारे में सोच लिया कीजिए |
धर्मवीर कुमार :- तो मैंने कब कहा कि मेरे लिए परेशान हुआ करो |
वीरेन :- यहां हम सब आपके लिए क्या कुछ नहीं करते और आप ……….|
धर्मवीर कुमार :- तो मेरे लिए इतना परेशान होना छोड़ दो | वैसे भी अब मेरी सेहत ठीक है |
वीरेन यह सुनकर अंदर चला जाता हैं | सभी सो जाते हैं अगले दिन वीरेन फिर परेशानी में अपना सारा काम करता हैं | आखिर में काम पर जाता हैं | काम करते वक्त उसे अपने बाबूजी के खांसने की आवाज याद आती रहती हैं | वह अपने अभद्र व्यवहा के कारण दुःखी भी रहता हैं |
काम खत्म होते ही वह अपने घर जाता हैं | घर पर उसे पता चलता है उसकी मां और उसके पिताजी घर पर नहीं हैं | शीला के बताए जाने पर उसे पता चलता है कि उसके पिता की तबीयत अचानक से बहुत ज्यादा खराब हो गई थीं , इसीलिए आस-पड़ोस के कुछ लोग और उसकी मां उन्हें लेकर अस्पताल गए हैं| अस्पताल के लिए वह निकलने वाला ही रहता हैं कि उसकी मां उसके पिताजी को लेकर घर आ जाती हैं | उसके पिताजी को वहीं आंगन में लेटा दिया जाता हैं | तभी शीला की गोद में खेलती हुई मीना उसकी गोद से उतरकर अपने दादाजी को उठाने का प्रयत्न करती हैं साथ ही साथ घुमाने को भी कहती हैं | लाश देखकर शीला रोते हुए अंदर जाती हैं |अपने पिता को देखकर वीरेन के माथे से शिक़न तो हट जाती हैं , लेकिन आंखों में आंसु भर जाते हैं |
~ शिखा ताँती