ठोकर बहुत मिली जिंदगी में हमें

दोस्तों,
एक मौलिक ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों की हवाले,,,!!

               ग़ज़ल
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"गहरे घाव मिले ज़िंदगी में हमें,
क्यूँ जीना फिर शर्मिंदगी में हमें।
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मस्त थे हम अपनी ही दुनियां में,
ले आया ये नशीब गंदगी में हमें।
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अस्मत लूटी जा रही देखो यहाँ,
रहना नही ऐसी दरिंदगी में हमें।
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भगवान कहाँ है तूँ यह बता हमें,
क्या मिला है तेरी बंदगी में हमें।
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न अमन है न सुकून भरा चैन है,
मत मारो प्रेम की तिश्नगी में हमें।
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हम ठहरे "जैदि" मारे मुहब्बत के,
ठोकर बहुत मिली जिंदगी में हमें।
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मायने:-
बंदगी:-ईश्वर की अराधना
तिश्नगी:-प्यास

शायर:-"जैदि"
डॉ.एल.सी.जैदिया "जैदि"

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